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एक आलोचक को अपनी आलोचनात्मक भावना को प्रधान मानते हुए तटस्थ रूप से कृति की समीक्षा करनी चाहिए उपरोक्त कथन किस निबंध से लिया गया है

मुक्तिबोध – (एक साहित्यिक की डायरी-हाशिये पर नोट्स)