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प्रबल जो तुम में पुरूषार्थ हो, सुलभ कौन तुम्हे न पदार्थ हो। प्रगति के पथ पर विचरो उठो, भुवन में सुख

शांति भरो उठो ॥ में छंद है दु्रतविलम्बित