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शब्दबद्ध होने की प्रक्रिया के भीतर जो प्रवाह बहता रहा है वह समस्त व्यक्तित्व और जीवन का प्रवाह होता है उपरोक्त कथन किसका है

मुक्तिबोध (एक साहित्यिक की डायरी, प्रथम प्रकरण – तीसरा क्षण)