व्यभिचारी या संचारी भाव कहते हैं
वह भाव जो स्थायी भाव की ओर चलते है, जिससे स्थायी भाव रस का रूप धारण कर लेवे। इसे यो भी कह सकते हैं जो भाव रस के उप कारक होकर पानी के बुलबुलों और तरंगों की भांति उठते और विलिन होते है। उन्हें व्यभिचारी या संचारी भाव कहते है।