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यह युग (भारतेन्दु) बच्चे के समान हँसता-खेलता आया था, जिसमें बच्चों की सी निश्छलता, अक्खड़पन, सरलता और तन्मयता थी। यह कथन किस आलोचक का है?

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल